Wednesday 8 February 2017

आँखों में ख्वाब...


दिलों में आग लबों पर गुलाब रखते हैं, 
सब अपने चेहरों पे दोहरी नका़ब रखते हैं, 

हमें चराग समझ कर बुझा न पाओगे, 
हम अपने घर में कई आफ़ताब रखते हैं, 

बहुत से लोग कि जो हर्फ़-आश्ना भी नहीं, 
इसी में खुश हैं कि तेरी किताब रखते हैं, 

ये मैकदा है, वो मस्जिद है, वो है बुत-खाना, 
कहीं भी जाओ फ़रिश्ते हिसाब रखते हैं, 

हमारे शहर के मंजर न देख पायेंगे, 
यहाँ के लोग तो आँखों में ख्वाब रखते हैं।
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बुझी नज़र तो करिश्मे भी रोज़ो शब के गये, 
कि अब तलक नही पलटे हैं लोग कब के गये। 

करेगा कौन तेरी बेवफ़ाइयों का गिला, 
यही है रस्मे ज़माना तो हम भी अब के गये। 

मगर किसी ने हमें हमसफ़र नही जाना, 
ये और बात कि हम साथ साथ सब के गये। 

अब आये हो तो यहाँ क्या है देखने के लिए, 
ये शहर कब से है वीरां वो लोग कब के गये। 

गिरफ़्ता दिल थे मगर हौसला नहीं हारा, 
गिरफ़्ता दिल है मगर हौंसले भी अब के गये। 

तुम अपनी शम्ऐ-तमन्ना को रो रहे हो 'फ़राज़' 
इन आँधियों में तो प्यारे चिराग सब के गये।

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