आपके हुस्न कि तारीफ में सोचता हूँ कुछ अल्फाज लिखूं ,
लिखा ना हो जो अब तक किसी ने ऐसा कुछ आज लिखूं ,
गीत लिखूं या गजल लिखूं ,शायरी लिखूं या कलाम लिखूं ,
लिखने को बेचैन हूँ ,पर समझ ना आए क्या लिखूं..
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चाहा है तुम्हें अपने अरमान से भी ज्यादा,
लगती हो हसीन तुम मुस्कान से भी ज्यादा,
मेरी हर धड़कन हर साँस है तुम्हारे लिए,
क्या माँगोगे जान मेरी जान से भी ज्यादा..
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उल्फत का अक्सर यही दस्तूर होता है,
जिसे चाहो वही अपने से दूर होता है,
दिल टूटकर बिखरता है इस कदर,
जैसे कोई कांच का खिलौना चूर-चूर होता है..
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लिखा ना हो जो अब तक किसी ने ऐसा कुछ आज लिखूं ,
गीत लिखूं या गजल लिखूं ,शायरी लिखूं या कलाम लिखूं ,
लिखने को बेचैन हूँ ,पर समझ ना आए क्या लिखूं..
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चाहा है तुम्हें अपने अरमान से भी ज्यादा,
लगती हो हसीन तुम मुस्कान से भी ज्यादा,
मेरी हर धड़कन हर साँस है तुम्हारे लिए,
क्या माँगोगे जान मेरी जान से भी ज्यादा..
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उल्फत का अक्सर यही दस्तूर होता है,
जिसे चाहो वही अपने से दूर होता है,
दिल टूटकर बिखरता है इस कदर,
जैसे कोई कांच का खिलौना चूर-चूर होता है..
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